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मानस मंदिर में प्रिय तुम / सुमित्रा कुमारी सिन्हा
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मानस-मंदिर में प्रिय तुम,
निशिदिन निवास करते हो।
पर उसकी जीर्ण दशा का
कुछ ध्यान नहीं रखते हो।
इतने बेसुध हो तुम जब,
कैसे हो मुझ को आशा !
तुम पूरी कभी करोगे
मेरे मन की अभिलाषा !