भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम्हारी याद छाँव है / अंकित काव्यांश
Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:50, 3 अगस्त 2020 का अवतरण
छोड़कर चले गए कभी कभी सभी
रूठती हुईं लगीं दिशाएं जब कभी
यूं लगा कि मन दुःखों का धूप गाँव है
किन्तु गाँव में तुम्हारी याद छाँव है।
प्यार की मरुस्थलीय भूमि के लिए
त्याग आयीं तुम सुखों की लाडली नदी।
तुम मिली तो लग रहा हुआ कुछ इस तरह
रुक गयी हो एक पल के वास्ते सदी।
तुम कहो तो एक बात आज मैं कहूँ।
फ़र्क़ ही नही कि डूब जाऊं या रहूँ।
अब तुम्हारा साथ ही नदी है नाव है।
नीम से नियम समाज के न मानकर
हाथ थाम संग चल पड़ीं जहाँ कहा।
जो तुम्हारे भाग्य में लिखे नही गए
उन दुःखों को भी ख़ुशी ख़ुशी सदा सहा।
आस पास प्यास का नगर बसा लिया
फिर तुम्हे नगर का राजपाठ दे दिया
जिंदगी का आख़िरी यही तो दाँव है।