भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दूरी / सुरेश बरनवाल
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:34, 11 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेश बरनवाल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मैं
अपने घर की छत से
निहारा करता सितारे
और आंखों से नापता
जमीन से उनकी दूरी को
फिर बेबस हो
बैठ जाता था।
एक दिन मैंने देखा
अपने तीन साल के बेटे को
चांदनी रात की बेला में
चांद को निहारते
और अपने पैरों पर उचककर
उसे लपकने की कोशिश करते
बार-बार।
मुझे लगा
इतना भी दूर नहीं आकाश।