भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ककहरा / पुरुषोत्तम प्रतीक
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:13, 16 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुरुषोत्तम प्रतीक |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
‘क‘ से काम कर,
‘ख‘ से खा मत,
‘ग‘ से गीत सुना,
‘घ‘ से घर की बात न करना, ङ ख़ाली ।
सोचो हम तक कैसे पहुँचे ख़ुशहाली !
‘च‘ को सौंप चटाई,
‘छ‘ ने छल छाया,
‘ज‘ जंगल ने, ‘झ‘ का झण्डा फहराया,
झगड़े ने ञ बीचोबीच दबा डाली,
सोचो हम तक कैसे पहुँचे ख़ुशहाली !
‘ट‘ टूटे, ‘ठ‘ ठिठके,
यूँ ‘ड‘ डरा गया,
‘ढ‘ की ढपली हम,
जो आया, बजा गया ।
आगे कभी न आई ‘ण‘ पीछे वाली,
सोचो हम तक कैसे पहुँचे ख़ुशहाली !