भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

असर-ए-याद / रमेश ऋतंभर

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:17, 17 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश ऋतंभर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब कोई कहीं दूर गहरी नींद में डूबा होता है
तब ठीक उसी वक़्त कोई उसे याद कर रहा होता है
जब कोई कहीं दूर भोजन के कौर निगल रहा होता है
तब ठीक उसी वक़्त कोई उसे याद कर रहा होता है
जब कोई कहीं दूर आइने में अपने को निहार रहा होता है
तब ठीक उसी वक़्त कोई उसे याद कर रहा होता है
किसी के अचानक सपने में आने, गले में कौर के अटकने
और शीशे के चटकने का कोई अर्थ होता है
किसी की याद यूँ ही बेअसर नहीं होती।