भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्रोध / अष्‍टभुजा शुक्‍ल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:44, 24 सितम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अष्‍टभुजा शुक्‍ल }} पकी फसल लाट ले गए होते खेतो...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पकी फसल

लाट ले गए होते

खेतों से

आँखों के सामने

तो उतना दुख नहीं होता


जितना कि

कच्ची फसल

काटकर छोड़ गए

खेतों में रातों-रात


जाने क्यों

दस्युओं से भी

अधिक क्रोध आता है

तस्करों पर