भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सिक्के बरसाना / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:59, 27 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बादल भैया ता-ता थैया,
बादल भैया ता-ता थैया।
पानी के संग बरसा देना,
कम से कम दस-पांच रुपैया।
नोट नहीं सिक्के बरसाना,
एक नहीं कई बार गिराना।
तीस रुपए में हो जाएगा,
चॉकलेट का ठौर-ठिकाना।
चॉकलेट की दम पर ही तो,
खेल सकेंगे चोर-सिपहिया।
कान खोलकर बिनती सुन लो,
सिक्कों की बौछारें कर दो।
हम सब बालक शरण तुम्हारी,
आज हमारी झोली भर दो।
उन पैसों से ले आएंगे,
चना-कुरकुरा गुड़ की लैया।
अगर नहीं सिक्के बरसाए,
भागे सिक्के बिना गिराए।
तो चंदा-तारों से कहकर,
तुमको घूंसे सौ लगवाए।
घूंसे खाकर हाल तुम्हारा,
कैसा होगा बादल भैया।