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इश्क़ का राग जो गाना हो मैं उर्दू बोलूं / अजय सहाब

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इश्क़ का राग जो गाना हो मैं उर्दू बोलूं
किसी रूठे को मनाना हो ,मैं उर्दू बोलूं

किसी मुरझाते हुए बाग़ में ग़ज़लें पढ़कर
जब मुझे फूल खिलाना हो ,मैं उर्दू बोलूं

इसकी खुशबू से चला आएगा खिंचकर कोई
जब उसे पास बुलाना हो ,मैं उर्दू बोलूं

बेअदब बज़्म में शाइस्ता बयानी कर के
शमए तहज़ीब जलाना हो ,मैं उर्दू बोलूं

बात नफ़रत की हो करनी तो ज़बानें कितनी
जब मुझे प्यार जताना हो ,मैं उर्दू बोलूं

ऐसी ख़ामोश सी बज़्मों में भी लफ़्ज़ों से 'सहाब'
जब मुझे आग लगाना हो ,मैं उर्दू बोलूं