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वह क्षण / उत्तिमा केशरी
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सच! वह क्षण
शाश्वतता भरा था
जब रोपा था उसने
अपने भीतर प्रेम का
एक अस्फुट बीज
तब
हो गई थी आप्लावित
दिव्य भावना से
तत्क्षण अभिभूत हो
आलोड़ित हो उठी थी
अतलान्त गहराइयों तक
तब
इस सघन अहसास में
फूटी थी एक सुगन्ध
और उस सुवास
आलोड़न से
गतिमय हो उठी
मेरे जीवन की
रचनात्मक यात्रा ।