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किसी तरह दिखता भर रहे थोड़ा-सा आसमान / भगवत रावत

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किसी तरह दिखता भर रहे थोड़ा-सा आसमान

तो घर का छोटा-सा कमरा भी बड़ा हो जाता है

न जाने कहाँ-कहाँ से इतनी जगह निकल आती है

कि दो-चार थके-हारे और आसानी से समा जाएं

भले ही कई बार हाथों-पैरों को उलाँघ कर निकलना पड़े

लेकिन कोई किसी से न टकराये।


जब रहता है, कमरे के भीतर थोड़ा-सा आसमान

तो कमरे का दिल आसमान हो जाता है

वरना कितना मुश्किल होता है बचा पाना

अपनी कविता भर जान !