भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वस्ल के सब सवाब रहने दो / उदय कामत

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:18, 7 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उदय कामत |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वस्ल के सब सवाब रहने दो
हिज्र के सब अज़ाब रहने दो

तज्रबे मेरे काम आएंगे
सब किताब-ए-निसाब रहने दो

तग-ओ-दौ से नीँद आई मुझे
देखने दो ना ख़्वाब, रहने दो

क़ुफ़्ल होटों पर लग न जाये फिर
वो मुकम्मल जवाब रहने दो

ये ग़लत-फ़हमी है या ख़ुश-फ़हमी
रुख़ पर उनके नक़ाब रहने दो

दूर 'मयकश' से जब ख़िरद वाले
मीना में अब शराब रहने दो