भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज़ुनून / सपन सारन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:42, 13 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सपन सारन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जब देश में दंगा हो रहा था
ऐ कवि तू तब कहाँ था ?
— मेरे गुसल का नल टूटा था
पानी बहता बचा रहा था
जब लोग सारे रो रहे थे
ऐ कवि तू तब कहाँ था ?
— बच्ची मेरी भूखी बड़ी थी
खाना-वाना जुटा रहा था
जब ख़ून गीला बह रहा था
ऐ कवि तू तब कहाँ था ?
— आसमां में तारे कम थे
मैं धुन्ध-धुआँ हटा रहा था
जब सब बेचारे मर चुके थे
ऐ कवि तू तब कहाँ था ?
— नंगी क़ब्रें खुली पड़ी थीं
इक-इक की चादर बना रहा था