Last modified on 19 सितम्बर 2020, at 18:48

मिलते रहे सिरहाने हमको / रोहित रूसिया

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:48, 19 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रोहित रूसिया |अनुवादक= |संग्रह=नद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मिलते रहे
सिरहाने हमको
हरदम नए सवाल

कहाँ मिला है वक़्त
जो सोचूँ
कब उलझी
कब सुलझी डोरी
बूझी एक तो
नयी मिल गयी
पहेलियों से भरी तिजोरी
मौन पड़े हैं
समाधान सब
मसले हैं वाचाल

बाज़ारों में हुआ है सौदा
मँहगे सपनों का
सस्ते में
अंतहीन सन्नाटों
की ही धूम मची
रस्ते रस्ते में
प्रश्नों से तो
जेब भरी हैं
उत्तर हैं कंगाल

अंगारों को रख हाथों में
जब भी सोचा
सोचा चन्दन
बंजर-बंजर से
सपनों में
जब रोपा
रोपा नंदन वन
फिर भी जीवन
क्यों ऐसा
ज्यों गीत
बिना लय-ताल?