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आज किसकी याद / रोहित रूसिया

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आज किसकी याद
मन में
अड़ गई

भोर किसके द्वार
रख आई किरण
दोपहर को लग गया
कैसा ग्रहण
और उदासी
सांझ की भी
बढ़ गई

पाहुने वह क्यों
मेरे घर पर
नहीं आये
राह तकते
आँगना के
फूल मुरझाए
द्वार की
रंगोली फीकी
पड़ गई

एक ज़रा मुस्कान को
तरसे अधर
गुम हुआ है चैन
आँखों का किधर
पीर को
जो कील भीतर
गड़ गई

आज किसकी याद
मन में
अड़ गई