भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सच झूठ / ब्रज श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:43, 3 अक्टूबर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ब्रज श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
वे जो बोल लेते हैं
उनके पास इस समय झूठ है
बोले जाने के लिए।
पृथ्वी नहीं बोलती
आसमां नहीं बोलता
नदी भी नहीं बोलती
पर्वत तो कभी नहीं बोलता
और यही सब कुदरत के
बड़े बड़े लोग हैं
जो नहीं बोलते
पशु पक्षी और मनुष्य
बोलते हैं तो
वे बोल रहे हैं
उनके पास विकल्प है
झूठ बोलने का
तो वे इसी को चुन रहे हैं।