भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जगाओ न बापू को, नींद आ गई है / 'शमीम' करहानी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:55, 20 अक्टूबर 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें

जगाओ न बापू को, नींद आ गई है
अभी उठके आये हैं,बज़्म-ए-दुआ से
वतन के लिये, लौ लगाके ख़ुदा से
टपकती है रूहानियत सी फ़ज़ा से
चली जाती है, राम की धुन, हवा से
दुखी आत्मा, शान्ति पा गई है
जगाओ न बापू को, नींद आ गई है।

ये घेरे है क्यों, रोने वालों की टोली
ख़ुदारा सुनाओ न मन्हूस बोली
भला कौन मारेगा बापू को गोली
कोई बाप के ख़ूं से, खेलेगा होली?
अबस, मादर-ए-हिन्द, शरमा गई है
जगाओ न बापू को, नींद आ गई है।

मोहब्बत के झण्डे को गाड़ा है उसने
चमन किसके दिल का, उजाड़ा है उसने?
गरेबान अपना ही फाड़ा है उसने
किसी का भला क्या, बिगाड़ा है उसने?
उसे तो अदा, अम्न की भा गई है
जगाओ न बापू को, नींद आ गई है।

अभी उठके खुद वो, बिठायेगा सबको
लतीफ़े सुनाकर, हंसायेगा सबको
सियासत के नुस्ख़े बतायेगा सबको
नई रोशनी दिखायेगा सबको
दिलों पर सियाही सी क्यों छा गई है?
जगाओ न बापू को, नींद आ गई है।

वो सोयेगा क्यों, जो है सबको जगाता
कभी मीठा सपना, नहीं उसको भाता
वो आज़ाद भारत का है, जन्म दाता
उठेगा, न आँसू बहा, देस-माता
उदासी ये क्यों, बाल बिखरा गई है
जगाओ न बापू को, नींद आ गई है।

वो हक़ के लिए, तन के अड़ जाने वाला
निशां की तरह, रन में गड़ जाने वाला
निहत्था, हुकूमत से लड़ जाने वाला
बसाने की धुन में, उजड़ जाने वाला
बिना, ज़ुल्म की जिससे,थर्रा गई है
जगाओ न बापू को, नींद आ गई है।

वो उपवास वाला, वो उपकार वाला
वो आदर्श वाला, वो आधार वाला
वो अख़लाक़ वाला, वो किरदार वाला
वो मांझी, अहिन्सा की पतवार वाला
लगन जिसकी, साहिल का सुख पा गई है
जगाओ न बापू को, नींद आ गई है।

कोई उसके ख़ू से, न दामन भरेगा
बड़ा बोझ है, सर पर क्योंकर धरेगा
चराग़ उसका दुशमन, जो गुल भी करेगा
अमर है अमर, वो भला क्या मरेगा
हयात उसकी, खुद मौत पर छा गई है
जगाओ ना बापू को, नींद आ गई है।