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वे कुछ दिन बचपन के मेरे / रामगोपाल 'रुद्र'
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वे कुछ दिन!
धरती की गोदी में भूला,
भोलापन फिरता था फूला,
आँखों में सपनों का झूला
प्राण तुहिन!
नील गगन आँखों की छाया,
भूतल पर जादू की माया,
बौरों के मधु से बौराया
विपिन-विपिन!
मिट्टी की सोंधी साँसों से
भर-भर उभर-उभर बासों से
उड़े रूप-रस के प्यासों-से
स्वर अमिलन!