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चाँदनी ने कहा, मेदिनी ने कहा / रामगोपाल 'रुद्र'

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चाँदनी ने कहा चाँद से ऐ पिया!
तू मुझे तो उजागर किये चल रहा;
पर, कभी देखता आप अपना हिया
दाग-सा क्या लिये, किसलिए जल रहा!

चन्‍द्रमा ने कहा दाग मेरा, प्रिये,
दाह है भूमि का, अंक में पल रहा!
विश्‍व-विष का हरण, प्राण का आभरण,
मैं धरा के लिए बन सुधा ढल रहा!

मेदिनी ने कहा मेघ से, ऐ सुजन!
तू मुझे तो जिलाता सुधादान से;
मन जुड़ाता, बदन लहलहाता मेरा,
मोर के पैंजनी बाँधता, गान से।
पर, जला तू भला किस तरह रस-धनी?
मेह बोला, बँधी वेदना प्राण से;
सिन्‍धु से विष-कुलिश भेंट में जो मिला
दे रहा मैं उसे बिन्‍दु-प्रतिदान से!