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आज विदा तुमको देनी है / रामगोपाल 'रुद्र'

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हास तुम्हारा व्याज-सहित भर, फिर अपनी पीड़ा लेनी है!

दो दिन साथ चले हम बहते,
अपनी रामकहानी कहते;
आज अकेले ही मुझको अपनी झँझरी नैया खेनी है!

साथ तुम्हारा जीवन-फल था,
हाथ तुम्हारा जीवन-बल था;
आज यहाँ बस मैं हूँ, मेरी क़िस्मत और लहर-श्रेणी है!

प्रिय हे! आज नयन से वंचित
रत्न तुम्हें देते हैं संचित;
ले लो अपना हास, इन्हें तो फिर अपनी पीड़ा सेनी है!