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मेरे सपने फिर आए हैं / रामगोपाल 'रुद्र'

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आज गगन में फिर भी श्यामल बादल घिर आए हैं!

तम दिग्-दिग् में घिरता आता,
भीत विहग-दल तिरता आता,
मेरा भी कलहंस नीड़ में
उड़ता पड़ता गिरता आता;
जाने कौन सँदेशा फिर से मेघदूत लाए हैं!

मोर चकित है, शोर न करता;
'पी-पी' रटते चातक डरता;
टूटे दिल-सा टूट कभी, दल
कोई मर-मर करते झरता;
रात समझ चकई के लोचन भय से भरमाए हैं!

आज किसी की याद विकल-सी
हिलती है दिल में चलदल-सी,
कुहुक-कुहुक उठती, यह क्या है?
रह-रहकर भीतर कोयल-सी!
जाने क्या संकेत, कहाँ से, प्राणों ने पाए हैं!