भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरे सपने ही सुख हैं / रामगोपाल 'रुद्र'
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:01, 7 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामगोपाल 'रुद्र' |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मेरे सपने ही सुख हैं, सोने दे, साथी!
दिन में, जग की चंचलता में, भूल गया पथ अपना,
मन की मधुर सफलता बन कर आया है यह सपना;
दो पल तो मन की थकान खोने दे, साथी!
रात कटी आँखों में; जब हो चला सवेरा
सपना बन आया है, मेरे अरमानों का फेरा;
यह सपना मत छीन, लीन होने दे, साथी!
दो छिन को यह भी आया है, मुश्किल से आया है;
बस, दो छिन को, मीत! उमंगों की दुनिया लाया है;
दो छिन तो इसके उर में रोने दे, साथी!