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मेरे सपने ही सुख हैं / रामगोपाल 'रुद्र'

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मेरे सपने ही सुख हैं, सोने दे, साथी!

दिन में, जग की चंचलता में, भूल गया पथ अपना,
मन की मधुर सफलता बन कर आया है यह सपना;
दो पल तो मन की थकान खोने दे, साथी!

रात कटी आँखों में; जब हो चला सवेरा
सपना बन आया है, मेरे अरमानों का फेरा;
यह सपना मत छीन, लीन होने दे, साथी!

दो छिन को यह भी आया है, मुश्‍किल से आया है;
बस, दो छिन को, मीत! उमंगों की दुनिया लाया है;
दो छिन तो इसके उर में रोने दे, साथी!