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नाता टूट गया जग से जब / रामगोपाल 'रुद्र'

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नाता टूट गया जग से जब, नाता टूट गया
तुम्हारा नाता टूट गया!

बोलो तो, हे नभ की रानी!
क्या, सचमुच, वह थी नादानी?
नयनों में मेरा सैलानी मन जो छूट गया!

नीरधि में डुबकियाँ लगाकर
मैंने मोती रखे चुराकर;
पर किसका वह ध्यान? कि आकर सब कुछ लूट गया!

चाँद, जिसे लहरों ने घेरा,
आज स्वयं बन गया अँधेरा;
एक-एक कर सपना मेरा फूला, फूट गया!