भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आकाश ही आकाश / मौरीस कैरेम / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:25, 8 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मौरीस कैरेम |अनुवादक=अनिल जनविजय...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मेरे चारों तरफ़ आकाश है
ऊपर भी आकाश है
आगे-पीछे आकाश
दाएँ-बाएँ आकाश है
चारों तरफ़ आकाश
मैं हूँ कहाँ ?
चारों ओर चक्कर काट रही है मान्या !
धूप भरा दिन है सुनहरा
बावला है दिन यह रुपहला
झूल रहा चारों ओर आकाश
मन में मेरे झूम रहा आकाश !
रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय