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अब ये ग़ज़लें मिज़ाज बदलेंगी / डी. एम. मिश्र

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अब ये ग़ज़लें मिज़ाज बदलेंगी
बेईमानों का राज बदलेंगी

दूर तक प्यार का स्वर गूँजेगा
ग़ज़लें रस्मो-रिवाज बदलेंगी

जिसमें इंसानियत की बात न हो
ग़ज़लें ऐसा समाज बदलेंगी

दीन-दुखियों का वक़्त आयेगा
ग़ज़लें बंदानवाज़ बदलेंगी

ख़़ूब दरबार कर चुकीं ग़ज़लें
अब यही तख़्त-व-ताज बदलेंगी