भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आज भी न आए / रामगोपाल 'रुद्र'
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:55, 13 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामगोपाल 'रुद्र' |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
आज भी न आए!
किस लाज के लजाए? !
घाट के कथा तो
अब हो चुकी पुरानी;
कौन चौंकता है
सुन चीर की कहानी? !
क्या हुआ रई को?
चलती नहीं चलाए!
हर तरफ़ खड़ी हैं,
अपवाद की उँगलियाँ;
भीत क्या टपूँ मैं!
हैं बंद सभी गलियाँ;
द्वार पर खड़े हैं
सब खुखड़ियाँ उठाए!
टेर रहे मुझको,
अब किस करील बन में?
बिंध रही यहाँ मैं,
कंटाल आयतन में!
कौन भला उनको,
अब तस्करी सिखाए?