भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरी ऐसी गति पर / रामगोपाल 'रुद्र'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:38, 16 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामगोपाल 'रुद्र' |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी ऐसी गति पर अब तो लोग तुम्हें हँसते हैं,
देखो, लोग तुम्हें हँसते हैं!

सर्द दर्दवालों की बोली
लगती है छाती में गोली;
उनका कौन उपाय कि जो मधु के पाँखों डँसते हैं?

अलि हँसते सोनामाखी को,
तितली दीप-सती पाँखी को;
परता जहाँ बनी तत्‍परता, सब यों ही नसते हैं!

मुँह कैसे क्या बात बनाए,
घर का भेद न खुलने पाए?
करुणा के बादल जब स्वर की घाटी में फँसते हैं!