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निर्वात-कि दल तक / रामगोपाल 'रुद्र'
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निर्वात कि दल तक जहाँ नहीं हिलते हैं
पूजा के फूल वहीं चुपके खिलते हैं!
पाऊँ प्रवेश मैं कैसे, उस कानन में
किरनों के कोमल पाँव जहाँ छिलते हैं! S