भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हंसो भाई पेड़ / माहेश्वर तिवारी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:51, 6 दिसम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= माहेश्वर तिवारी |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कहती है दूब
हँसो भाई पेड़
बाहर जितना देखते हो
धरती में
धसों भाई पेड़ ।
जड़ें बहुत गहरे ले जाओ
यहाँ वहाँ उनको फैलाओ
चील की तरह बाँहों पंजों में
आंधी को
कसो भाई पेड़ ।
चील किसे देती है सोचो
आसमान गुर्राए तो नोचो
गीत की तरह हरियाली पहनो
जन-जन में
बसो भाई पेड़ ।