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एक कवि का जाना / सुभाष राय

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 फूलों के रंग उदास हो गए हैं
पेड़ों पर कोई हलचल नहीं है
पत्तियाँ रोज़ की तरह बज नहीं रहीं
हवा बिलकुल ख़ामोश है, चल नहीं रही
उसका मन बहुत भारी हो गया है
अचानक सफ़ेद अन्धेरे की तरह
मन पर घना कुहरा छा गया है
कुछ भी नज़र नहीं आ रहा

अपनी छाया भी जाने कहाँ गुम हो गई है
रोशनी के चेहरे पर दुख पुत गया है
एक बोलता हुआ आदमी
उजाले की बात करता हुआ कवि
अचानक चुप हो गया है
कुछ पन्ने फिर भी फड़फड़ा रहे हैं
जहाँ उसके लिखे हुए शब्द तनकर खड़े हैं
अमानवीयता और तानाशाही के ख़िलाफ़
जहाँ उसकी आत्मा लगातार गा रही है
मानवता और मुक्ति के अमर गान

(मंगलेश जी के जाने पर)
10/12/2020