Last modified on 7 जनवरी 2021, at 22:36

चलता नहीं काठ का घोड़ा! / मोहनलाल महतो 'वियोगी'

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:36, 7 जनवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहनलाल महतो 'वियोगी' |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

माँ चिंतित होंगी, ले चल घर, देख बचा दिन थोड़ा
सोने की थी बनी अटारी,
हाय! लगाई थी फुलवारी,
फूल रही थी क्यारी-क्यारी,
फल से लदे वृक्ष थे पर मैंने न एक भी तोड़ा ।

छोड़ दिया सुख-दुख क्षण भर में,
गिरे खिलौने बीच डगर में,
पड़े रहे कुछ सूने घर में,
सखा और संगिनियों से तो अब बरबस मुँह मोड़ा।

बड़ी लगन से मेरे प्रियवर,
शुष्क लकड़ियों को चुन-चुनकर,
रख अपनी छाती पर पत्थर,
एक-एक टुकड़े को बाँधा, जोड़-जोड़ फिर जोड़ा।

है या चिड़िया-रैन-बसेरा,
बना खूब तू वाहन मेरा,
चल दे पथ है अगम, अंधेरा,
आगे की सुधि ले, सपना था, जो कुछ पीछे छोड़ा।
चलता नहीं काठ का घोड़ा!