भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जारी है अंतंद्वंद्व / सदानंद सुमन
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:36, 9 जनवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सदानंद सुमन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तुम से कही नहीं
मैंने अब तक
वह बात
जो जाने कब से
काँप कर रह जाती है
आते-आते
जुबान तक
अटक जाती
एक गाँठ की तरह
गले के नीचे
हर बार
दिखे नहीं कभी
फुर्सत में तुम
रहे व्यस्त निर्माण में
खुद की सुरक्षा के लिए
अपना ठोस कवच!
जारी है तब से
मेरा अंतर्द्वन्ध