भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सोच का रंग / सदानंद सुमन
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:46, 9 जनवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सदानंद सुमन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तुम्हारे चेहरे के
पीलेपन को देख कर
मेरी सोच का रंग
लाल हो गया है
मैं जानता हूँ
तुम्हारे खोये
हरेपन की वापसी के लिए
अब श्वेत की नहीं
लाल की ही जरूरत है।