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एक रात इतनी रातों में / रामकुमार कृषक

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एक रात इतनी रातों में
दीपावली हुई,
कोई चाल स्यात
अन्धियारे की यह चली हुई !

किसने पूरी - गन्ध परोसी
रोटी खिजलाई
डिब्बाबन्द कुनैन
मिठाई लेकर घर आई,

और संग बेमतलब बासी
बातें तली हुई !

किनके फटे कलेजे रातों
आँखें निकल उड़ीं
गोदरेज - गोदामों किनकी
खुशियाँ बन्द पड़ीं,

जिनकी लछमी उनकी मैया
कैसे भली हुई !

कैसे बिजली - बलब जले
सुलगी संझा - बाती
ये कैसी बारूद
पटाखे बनकर भरमाती,

किनके उजियालों की खातिर
बस्ती जली हुई !