भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हे होली / अनिल कुमार झा
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:12, 22 जनवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिल कुमार झा |अनुवादक= |संग्रह=ऋत...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मिल सभे संग सहेली हे होली
चलो, चलो खेलै ले होली, हे होली।
बिन फागुन के की एकरा पैभेॅ
बरस फेनूं सौंसे हेने बितैभेॅ
दुख-सुख लागथौं पहेली, हे होली।
लाल पियर सब रंग लै आबो
गोरो गोरो गालो पर ओकरा लगाबोॅ,
बिन रंग जीवन ढेली, हे होली।
हाँसी-मुसकी के गल्लोॅ-गल्लोॅ मिलिहोॅ
एक दोसरा के देखी केॅ खिलिहोॅ,
जीवन लागथौं केलि, हे होली।