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मुक्कमल / राजेश कमल

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किस्तों में मिले तुम
थोड़े थोड़े
कभी मुकम्मल नहीं
अभी रौशनी आई चेहरे पर
अभी छांव
अभी सुबह थी
अभी रात
भटकते रहे कभी इधर कभी उधर
बेचैन
कभी पूरी चाय नहीं
हमेशा कट चाय
भूख से कम खाया
प्यास से कम पानी
अँधेरा लम्बा था
उजाले छोटे

पूनम की रात थी
बादलों की अठखेलियाँ होती रही