भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सारा निर्वात / लुइस ग्लुक / श्रीविलास सिंह
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:44, 8 फ़रवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लुइस ग्लुक |अनुवादक=श्रीविलास सि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अभी भी संयोजित हो रहा है यह परिदृश्य,
अंधेरे में डूबी हैं पहाड़ियाँ। बैल
सोए हैं अपने नीले जुओं में,
खेत हो चुके हैं साफ फसलों की कटाई के बाद,
गट्ठर सफाई से बंधे हुए धरे हैं सड़क के किनारे
घास के बीच, उग रहा है नुकीला चाँद।
यह है बंध्यापन
फसल का या है महामारी।
और पत्नी खिड़की से झुकी हुई
अपने हाथ फैलाये, भुगतान करने को
और बीज
सबसे अलग, सोने से, पुकारते
आओ यहाँ
यहाँ आओ, नन्हें बालक
और आत्मा सरक जाती है वृक्ष से बाहर।