भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पृथ्वी और सूरजमुखी / तरुण भटनागर
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:06, 10 मार्च 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तरुण भटनागर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सूरजमुखी का खेत,
सूरज के साथ-साथ घुमाता है अपना चेहरा,
यह जानकर भी,
कि पूरी पृथ्वी भी नहीं करती है ऐसा,
जब उसकी पीठ होती है सूरज की तरफ,
तब चेहरा होता है अंधेरों में,
जब पीठ होती है अंधेरों में,
तो चेहरा होता है सूरज की तरफ़।
कि पूरे ब्रम्हाण्ड का कायदा है,
हर बडी षक्ति और पिण्ड का नियम,
कि कभी चेहरा, तो कभी पीठ।
यह जानकर भी नहीं बदला सूरजमुखी का खेत,
घूरता सूरज को आँख भर-भर,
तपकर, जलकर, निर्भय
बनाने अपने प्रचंड बीज।