भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लहकै ग्रीष्म सरंग में / कुमार संभव
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:11, 26 मार्च 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार संभव |अनुवादक= |संग्रह=ऋतुव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
आगिन नांकी लहकै ग्रीष्म सरंग में
केकरौह न बूझै उमंग में,
लू बनी दौड़ै, खोजै रानी बरखा केॅ
दिवाना छै, बस अपन्हेॅ रंग में।
तनलोॅ शिकारी नांकी
किरणोॅ के वाण छै,
तापोॅ में तपलोॅ छै
आकुल मन प्राण छै,
हँपसै छै बाघिन सुरंग में।
चिड़िया खोजै छाया छै
अजब ग्रीष्म के माया छै,
हवा डाकिनी हफकै लेॅ दौड़ै
भरलोॅ घामोॅ से काया छै,
बीतै रात चाँदनी संग में।