भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हरियाणे के वीरो जागो / रणवीर सिंह दहिया

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:55, 26 मार्च 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रणवीर सिंह दहिया |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हरियाणे के वीरो जागो तजो जात के बाणे नै॥
ढेरयाँ आला कुड़ता  सै समझो इसके ताणे नै॥

गरीब माणस नै मरज्याणी गरीब भाई तैं दूर करै
अमीर होज्याँ एक थाली मैं यो गरीब मजबूर फिरै
अमीर इस्तेमाल भरपूर करै गरीबाँ नै बहकाणे नै॥
ढेरयाँ आला कुड़ता  सै समझो इसके ताणे नै॥

अमीरां का छोरा कोये बेरोजगार जमा ना पाणे का
पुलिस कचहरी सब उनके ख़ाली हुक्म ना जाणे का
गरीब लूट कै खाणे का टोहया सै राह मरज्याने नै॥
ढेरयाँ आला कुड़ता  सै समझो इसके ताणे नै॥

मेहनत जात गरीबाँ की और कोये तो जात नहीं
जाट ब्राह्मण सिर फुड़वावें मिलै खान नै भात नहीं
जात मिटा सकै दुभांत नहीं बात कही सै स्याणे नै॥
ढेरयाँ आला कुड़ता  सै समझो इसके ताणे नै॥

जात के ठेकेदारां की बांदी या करै इनकी ताबेदारी
आम आदमी जकड़ लिया अमीर करै पूरी पहरेदारी
रणबीर करै नहीं चाटूकारी नहीं बेचै अपणे गाणे नै॥
ढेरयाँ आला कुड़ता  सै समझो इसके ताणे नै॥