भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

होली / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:56, 28 मार्च 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध प्रसाद विमल |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नूनू रे, होली आवी गेलै
रंगोॅ के दिन आबी गेलै।

हमरा रंग नै दिहें रे नूनू
दादा तोरोॅ बूढ़ोॅ छौ नूनू

सच्चे बात कहै छियौ हम्में
लागै छै हमरा ठंडा नूनू

देखैं नी बहै छै पछिया बाव
रौदी में नै तनियोॅ टा ताव

छै फगुआ फाग जवानी केरोॅ
बूढ़ें ताव झूठे मूंछोॅ पर फेरोॅ

असर बात नै छौड़ा पर पड़लै
बोरी रंगोॅ से दादा केॅ हँसलै

रंग पड़तै दादा जी बौरलै
पोता साथें दादा भी फगुवैलै