भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शिशिर फिसिर गिरी / मुकेश कुमार यादव
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:39, 30 मार्च 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश कुमार यादव |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
शिशिर फिसिर गिरी, घुरी फिरी घिरी-घिरी।
मन में आनंद भरी, दिल के रिझाय छै॥
सोलहो शृंगार करी, देहरी औ द्वार फिरी।
चारों ओर फिरी-फिरी, सपना सजाय छै॥
कानन कुण्डल धरी, झूलना झूलन घरी।
आँखी में सुन्दर भरी, कजरा लगाय छै॥
मन में जे प्रीत भरी, रीत भरी डरी-डरी।
घुमत फिरत घरी, बड़ी घबराय छै॥
भुवन सुमन भरी, मधुवन रस भरी।
मन अकुलाय घरी, सजना बुलाय छै॥