Last modified on 4 अप्रैल 2021, at 23:56

मिला नहीं उसका है ग़म / जतिंदर शारदा

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:56, 4 अप्रैल 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जतिंदर शारदा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मिला नहीं उसका है ग़म
जो मिल जाए लगता कम

शब्दों में छिपे हुए हैं घाव
शब्दों में छिपी हुई मरहम

कीकर बो मीठे फल पाऊँ
अधम का फल कैसे उत्तम

यह छाया एक छलावा है
अपने होने का है यह भ्रम

न ख़ुशी खरीदी जा सकती
न बेचा जा सकता है ग़म

तम ने कब देखी आभा
आभा ने कब देखा है तम

विष घोला है विश्वासों में
मन में पाल रखें हैं भ्रम

बढ़ती जाती हैं तृष्णाएँ
होता जाता है जीवन कम

सकल सर्जन में झलक रहा
मानव जाति का ही परिश्रम

अपने संग ही लड़ना है
जिसको कहते हैं संयम