भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शिशिर के जगतै भाग / कुमार संभव

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:48, 12 अप्रैल 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार संभव |अनुवादक= |संग्रह=ऋतुव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शिशिर के जगतै भाग।
आगू में ही ते खाड़ो छै फागुन फाग
शिशिर के जगतै भाग।

धूपोॅ के साथें बहै पछिया बयार छै
लŸार परछŸाी गीत गाबै मल्हार छै
तनफन कद्दू के लत में भी भरलोॅ छै अनुराग
शिशिर के जगतै भाग।

मन भर नाचै, शिशिर करै अठखेली
बिहसै हवा संग लागै पगलैली
धरती संग शिशिर के सजतै सुहाग
शिशिर के जगतै भाग।

बूट, खेसाड़ी सभे पकी-पकी गेलै
गहुमो के बाली भी झरझर बोलै
खेतोॅ में गाबै शिशिर मनहर राग
शिशिर के जगतै भाग।

नाको के नकबेसर मांगै कागा
सगुनोॅ के बदला लेतै हतभागा
मुन्हाँ पर उड़ि-उड़ि बैठै छै काग
शिशिर के जगतै भाग।