भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

डबडबाए नयन का पता चल गया / जहीर कुरैशी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:37, 21 अप्रैल 2021 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

डबडबाए नयन का पता चल गया
बदलियों से गगन का पता चल गया

लाख कोई छिपाने की कोशिश करे
हाव—भावों से मन का पता चल गया

एक मीठी नदी ज्यों ही खारी हुई
उसको अपने ‘चयन’ का पता चल गया

अवसरों के निकष से गुज़रते हुए
खुद—ब—खुद मन—वचन का पता चल गया

वो ही रस्सी पे दौड़ेगा नट की तरह
जिसको निज संतुलन का पता चल गया

उम्र के मोड़ पर साठ के बाद में
सबको अपनी थकन का पता चल गया

अपने शे’रों से दुनिया बदलते हुए
शायरी के मिशन का पता चल गया !