भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ इरादे सफल न हो पाए / जहीर कुरैशी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:19, 21 अप्रैल 2021 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ इरादे सफल न हो पाए
झोंपड़ी से महल न हो पाए

पाप के पंक में धँसे ऐसे
चाहकर भी कमल न हो पाए

ऐसे-ऐसे कठिन सवाल मिले
हल किए किन्तु हल न हो पाए

बंद मुठ्ठी में कैद है जुगनू
कैद मुठ्ठी मे पल न हो पाए

मुस्कुराने में फँस गए इतने
फूल के बाद फल न हो पाए

हमको पत्थर बना के छोड़ दिया
और पत्थर, तरल न हो पाए

जितने चाहे थे अपने जीवन में
उतने रद्दो-बदल न हो पाए