भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इस जीवन का सार / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:49, 21 अप्रैल 2021 का अवतरण
कई तनाव, कई उलझनों के बीच रहे
'किचिन' झगड़ते हुए बर्तनों के बीच रहे
असंख्य लोग हज़ारों प्रकार के रिश्ते
हम इस तरह कई संबोधनों के बीच रहे
है उनके पास जहर को भी बेचने का हुनर
तमाम लोग जो विज्ञापनों के बीच रहे
वचन से हम भी हरिश्चंद्र' सिद्ध हो न सके
ये बात सच है कि हम दर्पनों के बीच रहे
जो अपने रूप पे आसक्त हो गए खुद ही
वो आमरण कई सम्मोहनों के बीच रहे
पुरानी यादों के एकांत बंद कमरे में
समय निकाल के हम बचपनों के बीच रहे
भरी सभा में वे ही कर सके हैं चीर—हरण
जो बाल्यकाल से दुर्योधनों के बीच रहे