भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीत एक अनवरत नदी है (नवगीत) / उमाकांत मालवीय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:07, 22 अप्रैल 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उमाकांत मालवीय |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
गीत एक अनवरत नदी है
कुठिला भर नेकी है
सूप भर बदी है
एक तीर तोतले घरौंदे
खट्मिट्ठे गाल से करौंदे
नागिन की बीन
सुरसधी है ।
पत्थर के पिघलते मसौदे
पर्वत पर तुलसी के पौधे
सावन की सुदी है
बदी है ।
लहर -लहर किरण वलय कौंधे
मीनकेतु फिसलन के सौदे
अनलहक पुकार
सरमदी है ।