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गीत एक अनवरत नदी है (नवगीत) / उमाकांत मालवीय

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गीत एक अनवरत नदी है
कुठिला भर नेकी है
सूप भर बदी है

एक तीर तोतले घरौंदे
खट्मिट्ठे गाल से करौंदे
नागिन की बीन
सुरसधी है ।

पत्थर के पिघलते मसौदे
पर्वत पर तुलसी के पौधे
सावन की सुदी है
बदी है ।
 
लहर -लहर किरण वलय कौंधे
मीनकेतु फिसलन के सौदे
अनलहक पुकार
सरमदी है ।