भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
व्यर्थता / शलभ श्रीराम सिंह
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:56, 3 मई 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह |संग्रह=उन हाथो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कन्धे पर रखा हाथ
मन को न छू रहा हो अगर
व्यर्थ है।
चेहरे पर टिकी निगाह
आत्मा को न देख रही हो अगर
व्यर्थ है।
आलिंगनबद्ध देह
बोध की सीमा न लाँघ रही हो अगर
व्यर्थ है।
रचनाकाल : 1991 विदिशा