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जीवन बचाता हूँ / प्रयाग शुक्ल

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जल को बचाता
             तो जीवन बचाता हूँ ।

हवा को सँवारता
    निर्मल मैं रखता
             तो जीवन बचाता हूँ ।

पेड़ फूल पत्ते उगाता मैं
     रखता हूँ धरती को
          हरे-भरे सपने मे,
             जीवन बचाता हूँ ।

नभ को भी नील
             तो जीवन बचाता हूँ ।

कम्पित लौ अग्नि की
     रखता सम्भालकर
             जीवन बचाता हूँ ।
 
इन सबसे घिरा
    और इन्हीं में समाहित मैं
         इनके सम्मोहन में
            इन्हीं पर सवार मैं
             जीवन बचाता हूँ ।