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बैनर पर बाजारी सपने / रूपम झा
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बैनर पर बाजारी सपने
घर में सूखी आँत
बेच रहा है वक़्त काल बन
अब रोटी की गंध
राख न हो जाये यह जीवन
चारो ओर प्रबंध
चाह रहे हैं बोया जाए
फिर खेतो में दाँत
नई किरण लेकर आएगी
झुग्गी में सरकार
बोल रही जन-जन के हिस्से
अब होगा रोजगार
चमक दमक से हो ना जाएँ
फिर से हाथ अनाथ